Soft Exposing to RSS leader Ashok Singhal by an Indian Journalist.

चले गये राम मंदिर की आस लिये

जो ना तो राजनीति का नायक बना । ना ही हिन्दुत्व का झंडा बरदार । लेकिन जो सपना देखा उसे पूरा करने में जीवन कुछ इस तरह झोक दिया कि संघ परिवार को भी कई मोड पर बदलना पडा । और देश की सियासत को भी राम मंदिर को घुरी मान कर राजनीति का ककहरा पढना पडा । जी अशोक सिंघल ने सदा माना कि धर्म से बडी राजनीति कुछ होती नहीं । इसीलिये चाहे अनचाहे अयोध्या आंदोलन ने सनाज से ज्यादा राजनीति को प्रबावित किया और धर्म पर टिकी इस राजनीति ने समाज को कही ज्यादा प्रबावित किया । इसी आंदोलन ने आडवाणी को नायक बना दिया . आंदोलन से निकली राजनीति ने वाजपेयी को प्रधानमंत्री बना दिया । लेकिन निराशा अशोक सिंघल को मिली तो उन्होने गर्जना की । स्वयेसवको की सत्ता का विरोध किया । लेकिन आस नहीं तोडी । इसीलिये 2014 में जब नरेन्द्र मोदी को लेकर सियासी हलचल शुरु हुई तो चुनाव से पहले ही मोदी की नेहरु से तुलना कर राम मंदिर की नई आस पैदा की । यानी अपने सपने को अपनी मौत की आहट के बीच भी कैसे जिन्दा रखा यह महीने भर पहले दिल्ली में सत्ता और संघ परिवार की मौजूदगी में अपने ही जन्मदिन के समारोह में हर किसी से यह कहला दिया कि सबसे बेहतर तोहफा तो राम मंदिर ही होगा । लेकिन क्या यह तोहफा देने की हिम्मत किसी में है । यह सवाल विष्णु हरि डालमिया ने उठाया । भरोसा हो ना हो लेकिन सिंघल ने राम मंदीर को लेकर उम्मीद कभी नहीं तोडी । किस उम्मीद के रास्ते देश को समझने अशोक सिंघल बचपन में ही निकले और कैसे इंजिनियरिंग की डिग्री पाकर भी धर्म के रास्ते समाज को मथने लगे यह भी कम दिलचस्प नहीं । आजादी के पहले बीएचयू आईटी से बीटेक छात्रों की जो खेप निकली, सिंहल भी उसी का हिस्सा थे। लेकिन सिंहल ने कैंपस रिक्रूटमेंट के उस दौर में नौकरी और कारोबार का रास्ता नहीं पकड़ा.। बालिक देश बंटवारे के उस दौर में हिंदूत्व की प्रयोगशाला के सबसे बड़े धर्मस्थान गोरखपुर के गोरक्षनाथ मंदिर में उन्होंने डेरा डाला..गीता प्रेस और गीता वाटिका में वेदों और उपनिषदों का अध्ययन शुरु किया लेकिन आरएसएस नेता प्रोफेसर राजेंद्र सिंह रज्जू भैय्या के निर्देश पर वो आरएसएस प्रमुख गुरुजी गोलवलकर से मिलने नागपुर पहुंच गए। (दरअसल रज्जू भैय्या और अशोक सिंहल दोनों के पिता प्रशासनिक अधिकारी थे और यूपी के इलाहाबाद में अगल-बगल ही रहते थे, इसलिए दोनों परिवारों में रिश्ता बहुत गहरा बना। ) गोलवलकर से मुलाकात के बाद फिर सिंहल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, उन्होंने वेदों के पढ़ने का विचार छोड़ दिया…संगठन के रास्ते पर कदम आगे बढ़ाए….1950 और 1960 के दशक में सिंहल गोरखपुर, कानपुर और सहारनपुर में आरएसएस के प्रचारक रहे तो बाद में पूरा उत्तराखंड देहरादून-हरिद्वार और उत्तरकाशी तक उन्होंने कई साल आरएसएस के संगठन और आध्यात्मिक साधना में साधू-संतों के साथ भी बिताया। यानी समाज को मथा । और 70 के दशक में राजनीति मथने लगे । 1970 के दशक में सिंहल ने जेपी आंदोलन में हिस्सा लिया…दिल्ली में वो आरएसएस के प्रातं प्रचारक थे, जनता पार्टी के गठन में वो पर्दे के पीछे से अहम रोल अदा कर रहे थे…इमर्जेंसी के वक्त सिंहल भूमिगत हो गए….और जब इमर्जेंसी का दौर खत्म हुआ तो आरएसएस ने उन्हें विश्व हिंदू परिषद में भेज दिया । और पहली बार सिंघ को भी लगा कि अब धर्म के आसरे राजनीति को भी मथा जा सकता है ।

सिर्फ मंदिर ही उनकी नजरों में नहीं था वो राम मंदिर के जरिए सियासी तौर तरीको को बदल डालने में जुट गए……हिंदू धर्म की अंदुरुनी कमजोरियों के खिलाफ भी सिंहल ने मोर्चा खोला..। 1986 में अयोध्या में शिलान्यास हुआ तो सिंहल ने कामेश्वर नामके हरिजन से पहली ईंट रखवाई। देश के मंदिरों में दलित और पिछड़े पुजारियों की नियुक्ति का अभियान भी सिंहल ने चलाया। दलित और पिछड़ों को वेद पढ़ने के लिए सिंहल ने मुहिम चलाई, शंकराचार्यों से सहमति भी दिलवाई। दक्षिण भारत में दलित पुजारियों के प्रशिक्षण का बड़ा काम सिंहल ने शुरु करवाया। हिंदुओँ के धर्मांतरण के खिलाफ भी सिंहल ने मोर्चा खोला…..वनवासी इलाकों और जनजातियों से जुड़े करीब 60 हजार गांवों में उन्होंने एकल स्कूल खुलवाए….सैकड़ों छात्रावास भी पूर्वोत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक खड़े किए। दुनिया के 60 से ज्यादा देशों में अशोक सिंहल ने विश्व हिंदू परिषद के सेवा कार्य शुरु किए, खास तौर पर संस्कृत, वेद और कर्मकांड और मंदिरों के रखरखाव पर उनका जोर था…आधुनिक शिक्षा और शहरीकरण में उपभोक्तावाद के खिलाफ परिवार को मजबूती देने में भी वो जुटे रहे। यही वो दौर था जब राम मंदिर आंदोलन अयोध्या में करवट लेने लगा था…..सिंहल ने अयोध्या आंदोलन में वो चिंगारी ढूंढ ली जिसमें देश की राजनीति को बदल डालने की कुव्वत थी…इसके पहले आरएसएस और वीएचपी के एजेंडे में दूर दूर तक राम मंदिर नहीं था…..कहते हैं कि 1980 में दिल्ली में पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस राम मंदिर की मांग को लेकर सिंघल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो वीएचपी का लेटर हेड भी उन्होंने इस्तेमाल नहीं किया..रामजन्म भूमि में उतरने का फैसला अकेले सिंघल ने ले लिया तो फिर पूरे संघ परिवार को पीछे चलने पर मजबूर कर दिया। राम मंदिर को लेकर उनका जुड़ाव बेहद भावुक था जिस पर उन्होंने कभी कोई समझौता मंजूर नहीं किया…यही वजह है कि वो एनडीए सरकार के वक्त पीएम अटल बिहारी वाजपेई और एलके आडवाणी के खिलाफ मोर्चा खोलने में भी उन्होंने कोई गुरेज नहीं किया…….फिर वहा भरोसा टूटा लेकिन उम्मीद नहीं छोडी 2014 के चुनाव के पहले मोदी की पीएम उम्मीदवारी की मुहिम भी प्रयाग माघ मेले से सिंहल ने शुरु करवाई तो उनका सपना यही था कि मोदी सरदार पटेल की तरह सोमनाथ मंदिर की तरह अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए संसद में कानून लाकर सारे रोड़े खत्म करेंगे । लेकिन सपना यहा भी टूटा और शायद जीवन की डोर भी यही टूटी । सपना पूरा होने से पहले ही वो दुनिया छोड़कर चले गए। –Punya Prasun Bajpai

What evidence these extremist Hindu have that the Birth place of Ram is in Coordinates  26.7956°N 82.1943°E of Ayodhya? Is it really written in Ramayana that is solely tells about Rama? Making fools to polarize the Indian Hindu followers for Political use by RSS. These are the real dishonest man of India those propagates they are nationalist. But in truth these are anti Nationalist and dishonest Indians in India, that India ever had. RSS is an organization that is leaded by Manusmriti and Vedic ideological thoughts leaders, where mostly originators are Brahmins. The vedic philosophy divided the India by castes. Castes were the main reason, where most of the Shudra had adopted Islam due to Vedic caste exploitation in the regime of Islamic rules in India apart from forceful conversion. Brahmins had imposed Vedism and Castism by the shine of sword in India  by a Dishonest Brahmin emperor named Pushymitra Shunga (185 BC- 149 BC). No media highlights this; its because all media either run and controlled by Vedic promoters or supporters. The temple claimed as Ramajanma Bhoomi actually a Buddhist shrine; when Pushymitra destroyed the Buddhist empire in India replacing Vedism it had destroyed and it became a Rama temple. Islam came destroyed it and used replaced with Masjid. Its the transparent truth. No evidence are there that place is the birth place of Rama janma Bhoomi. Evidences are there it was a Buddhist monastery when they destroyed Babri Masjid but erased from media and from public to eradicate and hide controversies. Rama Janma Bhoomi concept is totally a political movement to polarize and unify Hindu peoples in India those constitutes more than 70% of Indian population. Vedic knave made it politics to polarize to Hindu followers to bag Hindu votes for RSS wing BJP party for political gain. No Ram or Allah is there to claim for the possession of that place, then what make the reasons to these criminals claiming that possession? They don’t care for national integrity, which shows how Nationalist they are. Simply criminals or hypocrites or fools those want to make a social disturbance making faith intolerance by polarization in Indian faith addicted people. The root cause is the anti nationalist Hindu organization RSS which self claims that, its a Nationalist Hindu Organization. RSS leaders and members are brainwashed by Vedic promoter & supporter Brahmins. Its directly proofs Radical Brahmins are more dangerous than Muslim orthodox or extremist but invisible due to Hindu faith strips the eye of a Hindu follower.

This entry was posted in Uncategorized. Bookmark the permalink.

Leave a comment